तब

महाभारत की तरह
जब ख़त्म हो जाएगा
प्रेम का उन्माद
श्लथ हो जायेंगे गात
कहने-सुनने को
रह जायेंगी सिर्फ शिकायतें....
हर तरफ सपनों की लाशें
दूर-दूर तक
कोई भी नहीं होगा अपना
भोर से रात तक
निपट अकेलापन
निद्रा विहीन रात
थकी हुई सुबह
बुझी हुई शाम
घर भर में पसरी झल्लाहट/
न पति को
दफ्तर भेजने की हड़बड़ी
न बेटे के
स्कूल से आने का इंतज़ार
उस तन्हाई में
हाँ....
उस निगोड़ी तन्हाई में
एक बार तो
इस बात पर ज़रूर पछताओगी
कि
मैं इस तरह
खारिज किये जाने के काबिल तो
नहीं ही था।


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