
तो सच ही होगा
कदाचित
नहीं ही देखा होगा
मैंने कोई सपना।
तुमसे मिलने के बाद
मुझे नींद भी तो नहीं आई...
फिर कैसे आ पाता सपना ?
शायद
मैंने पाली थी लालसा !
तुम्हें हमेशा
खुश रखने की।
हमेशा तुम पर
काबिज़ रहने की।
दोनों ही लालसाएं
रास्ते में ही मर गयीं।
याद आते हैं वे दिन...
तुम्हारी वांछित किताबों के लिए
छानता रहता था
शहर भर के पुस्तकालय/दुकानें
पिता की लाश को
रास्ते में रोक कर
बनवाया था
आवेदन का बैंक ड्राफ्ट
मुझे मना करने के बाद
कनु से मिलने
कैसे झटपट दौड़ी आई थीं....
मैं ही तो लाया था ख़ुशी-खुशी!
दोस्त के क़त्ल हुए भाई की लाश
श्मशान में पहुंचाते समय भी
बरता था एहतियात
कि
तुम्हारे ज़श्न में
न पड़े कोई खलल
बौराया रहता था
तुमसे मिलने को
एक लम्हे की मुलाक़ात के लिए
खर्च कर देता था पूरे-पूरे दिन।
यकीनन , इनमें .....
कहीं भी नहीं है सपना !
तुमने भी तो
अपने सारे उसूल
ताक पर रख दिए थे
अँधेरी रातों में
निपट अकेली
तय करती थीं
मीलों लम्बा सफ़र !
जिन से करती थीं नफ़रत
उनके आगे फैला देती थीं हाथ।
शराबी भाई ने
क्या-क्या नहीं कहा तुम्हें !
जाने कैसी-कैसी गंदगी से नवाज़ा
तुमने तो आज तक मुझे
बताया भी नहीं
कौन सा ताना बाकी रहा
जो मेरे लिए तुमने नहीं सुना/
किस-किसके आगे हाथ नहीं पसारे/
कितनी ज़लालत सही
फिर भी कभी नहीं की
कोई शिकायत।
यकीनन....
इन सबमें भी नहीं है कोई सपना।
shan... या shubh... भी
सपना कहाँ थे ?
तुम मुझे मुझसे ज्यादा जानती हो
इसलिए,
अगर तुम कहती हो कि
मैंने कभी भी
उम्र भर तुम्हारे साथ रहने
का सपना नहीं देखा
तुम्हें ब्याहने का सपना नहीं देखा
तुम पर स्वामित्व का सपना
नहीं देखा
तो यकीनन
ये सारी बातें भी सच ही होंगी।
सपने नहीं देखे
तभी तो
बेनूर हो गयी है ज़िन्दगी!
आगे की ज़िन्दगी में
नूर ही नूर हो
इसलिए...
आज से मैं रोज़ देखूँगा
हर रंग के सपने
मेरा यह स्वप्नदोष
क्या गुल खिलायेगा
यह तो रब ही जाने.....!!!
sab kuchh vahi janta hai. narayan narayan
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा समझाया है आपने
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज हमें फुर्सत मिली उन्हें याद करने की
हटाएंऔर हुआ ये की वो भी हमें याद करना भूल गए
Thanks for
जवाब देंहटाएंinformative post