अंतिम संस्कार

हेल्लो....
हूँ.....
जब इन दो लफ़्ज़ों में
सिमट जाएँ
सारे संवाद...
तब
अंतिम संस्कार
कर देने में ही भलाई है
आओ
क्रियाकर्म कर दें
अपने रिश्ते का।
सबसे पहले
नहलाते हैं रिश्ते की लाश...
तुम
शव का श्रृंगार करो
मैं चिता में लकड़ियाँ लगाता हूँ/
यह क्या ?
तुम तो रोने लगीं...
धत्त पगली
जब सबको मरना ही है
तो रिश्ता
कैसे अमर रहता ?
वह भी मर गया...
अंतिम विदा में
अशगुन मत करो
नहीं तो
भटकती रहेगी आत्मा/
अब मैं
कलश सर पर रखकर
उसमें छेद करूँगा
फिर परिक्रमा करूँगा
तुम चिता को मुखाग्नि देकर
अपना कौल पूरा करो/
ऐसा करो.....
अब कपाल क्रिया भी
तुम ही कर दो
रिश्ते को दफनाकर
श्मशान से लौटते हुए
मुझे मत देखना
नहीं तो
पूरी तरह से नहीं
टूट पायेगा मोह....!

टिप्पणियाँ

  1. श्मशान से लौटते हुए
    मुझे मत देखना
    नहीं तो
    पूरी तरह से नहीं
    टूट पायेगा मोह....!
    best lines... parantu yaaden, unka kya jo kabhi moh ko bhang hi nahi hone deti...

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