नौशीन मुबारक !

*नौशीन (मौसम का पहला हिमपात)
आज पहाडों पर
मौसम की पहली बर्फ गिरी है।
दिल के पहाड़ पर तो
यह बरफ तभी गिर गयी थी
जब कमरे में अकेले होने पर भी
तुमने कोई शरारत नहीं की/
चाय की प्याली थमाने से पहले
उसे जूठा नहीं किया/
हाथ से अख़बार नहीं छीना/
बारिश होती रही,
फिर भी मगोड़े नहीं तले/
बाँहों में भरना तो दूर,
चिकोटी भी नहीं काटी/
मैं तैयार हुआ तो
रूमाल जेब में नहीं रखा/
कमीज़ का खुला हुआ ऊपरी बटन
इंतजार करता रहा
तुमने उसे भी बंद नहीं किया/
हाँ
दिल की वह खिड़की ज़रूर बंद कर दी
जिससे
कभी-कभी मैं तुम तक
आ जाता था।
जोश और जमने में
जनम-जनम का बैर है/
तुम जोश से लबालब।
जमी हुई बरफ
वैसे भी नहीं सुहाती/
जानता हूँ ,
सर्द और ठंडा बर्ताव
तुम्हें रास नहीं आता/
दस्तूर है......
इसलिए
बर्फ के कुछ टुकड़े
तुम्हारे नाम से सहेजे हैं/
इंतज़ार करते-करते
अगर पिघल गये
तो इनके कतरों का अर्ध्य
आँगन की तुलसी को देकर
आचमन कर लूँगा/
और कर भी क्या सकता हूँ ?
है न ?
मुबारक हो नौशीन !

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