बलात्कार

थाने के बाहर पटिया पर बैठा हवलदार जियालाल बडे मगन भाव से दायें हाथ के अंगूठे से बांयें हाथ की हथेली पर रखी खैनी को रगड़ रहा था। नये दरोगा ने आज ही ज्वाइन किया था। जब से आया है फाइलों में ही सर गढाए बैठा है। होता है--- अभी तो रेख भी ठीक से नहीं निकली। नया मुल्ला है प्याज तो ज्यादा खायेगा ही।
---- सामने से दो औरतों को आता देख चौकन्ना हो उठा जियालाल। चलो कोई तो मूजी फंसा। बोनी तो हो जायेगी। वे पास आयीं तो देखा एक 40-45 साल की औरत थी और दूसरी 15-16 साल की लडकी।
' क्या है---?' जिया ने कर्कश आवाज में पूछा।
' मिलना है।' बडी मुश्किल से औरत की रिरियाती सी आवाज निकली।
' आओ मिलो--- बताओ काहे मिलना है?'
' दरोगा जी से मिलना है---' सहमी सी गुहार।
' हाँ- हाँ क्यों नहीं--- बेचारे सबेरे से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।'
वे बेचारी और सहम गयीं।
' का हुआ ?' जिया ने सख्ती से पूछा। उसे लगा पति ने धुन दिया होगा। ऐसे मामलों में कोई खास कमाई नहीं होती। दोनों चुप रहीं।
' गुड घोल रखा है---? बोलोगी नहीं तो हम नजूमी थोड़े ही हैं।' हवलदार ने डांटा।
' बदफेली हो गयी---' औरत के मुंह से बडी मुश्किल से बोल फूटे।
' ऐएँ ----' जिया जैसे नींद से जाग उठा हो। ये तो लाटरी निकल पडी। उन्हें हाथ के इशारे से पास आने को कहा। तभी अंदर से नये दरोगा अमित ने पूछा - ' कौन है ?'
लानत--- जिया के मुंह से दरोगा के लिए ढेर सारी गालियाँ निकल पड़ीं। खीर में मक्खी पड़ गयी। बोला-' दो जनानी हैं साब।'
' भेज दो।'
' जी---' जिया ने चिढ़ते हुए भीतर की और इशारा कर दोनों से कहा-' जाइये---'
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अमित को जब यह पता लगा कि मामला बलात्कार का है तो एकदम मुस्तैद हो गया। उसकी नौकरी का पहला रेप केस था। नौजवान खून वैसे ही कुछ कर दिखाने को बेचैन था। इसके अलावा उसके अचेतन में कहीं यह बात भी बैठी थी कि बलात्कार की शिकार लड़कियों को थाने में बहुत जलील किया जाता है। वह इस धारणा को भी बदलना चाहता था।
उसने लडकी से बडी नरमाई से पूछा-' क्या नाम है ?'
'मीना---'
'कौन था ?'
'-----'
'बोलो बेटा---' 25 साल के अमित को 16 साल की लडकी को बेटा कहने में अजीब सा लग रहा था। 'थे---' एक शब्द बोलकर मीना चुप हो गयी।
'थे---!' चौंक उठा अमित। थे यानि गैंग रैप--- ऊपर खबर करनी होगी। गंभीर मामला है।
'कितने थे ?' पूछताछ प्राम्भ हुई।
'तीन---'
' पहचानती हो ?'
' एक को---'
' कौन था ?'
' सेकेटरी ---' सेक्रेट्री को इसी तरह कह पाई मीना।
' काहे का सेक्रेट्री ?' मीना ने अचम्भे से दरोगा को देखा, फ़िर बोली-' पंचायत का--'
'कब की बात है ?'
' इतवार की---'
' आज तो मंगल है--- अब तक कहाँ थीं---?' दोनों चुप रहीं।
अमित को लगा बिना जवाब के भी काम चल जाएगा।
अगला सवाल पूछा -' क्या हुआ था ?'
'कर्जा लेना था---'
' तो---'
' उसी के लिए पंचायत में बुलाया था---'
' इतवार को---?'
' कहा था साब आए हैं , उनके लिए खाना बनाना है। वहीँ पर लोन के कागज भी साइन करवा देंगे।'
' हुंम --- बोलती जाओ'
' क्या बोलें साब---' इस बार माँ ने कहा ' खाना पकाने के बहाने बुलाकर बरबाद कर दिया---'
' पूरी बात बताओ---' अमित ने कहा। कोई नहीं बोला।
'बताना तो पडेगा ही ' अमित ने समझाने के अंदाज़ में कहा।
' पहले तो मुर्गा पकवाया--- ' लडकी बोली-' दो आदमी और थे--- एक को सेकेटरी सर- सर कह रहा था---तीनो ने दारू पी--- हमसे भी पीने को कहा, --- मना किया तो सर बोला तुम्हारी जात की लडकियाँ तो खूब पीती हैं--- खैर नहीं पीना तो मत पियो --- हमें खाना खिला दो फ़िर चली जाना---' लडकी साँस लेने को रुकी , फ़िर बोली- ' हमने कहा , मालिक लोन के कागज ---? तो सर बोला - हाँ हाँ वो भी कर देंगे --- लाओ कहाँ है कागज--- कर ही दूँ साइन---' इतना कह कर मीना चुप हो गयी।
' फ़िर ?' अमित ने उत्सुकता से पूछा।
मीना मानो फ्लैश बैक में चली गयी ------
मीना ने सेक्रेट्री की तरफ देखा। वो बोला ' सर , कागज अलमारी में रखे हैं। आप खाना खा लो फ़िर निकालता हूँ।'
' नईंई ---अभी लाओ।' सर ने हाथ के इशारे से मीना को पास बुलाया।
' जी ---' मीना बोली।
' कितने साल की हो?' सर ने पूछा।
मीना चुप रही।
' अं---?'
' पता नहीं।' मीना मासूमियत से बोली।
' लोन के लिए उमर तो बतानी ही पडेगी---'
' १४-१५ साल की होउंगी।'
' १४ की या १५ की।' मीना चुप रही।
' नहीं पता ?'
' ना ' ' कोई बात नहीं--- हमारे पास उमर नापने की मशीन है--- उस से नाप लेंगे--' सर ने तीसरे आदमी से एक आँख दबाते हुए कहा -' शर्मा जी, ज़रा मशीन से चैक करिए, कितनी उमर है इसकी---'
' यस सर--- ' कहते हुए शर्मा जी ने मीना से कहा - ' आओ--'
मीना उनके पीछे - पीछे चल पडी। शर्मा जी उसे पंचायत भवन में ही बनी डिस्पेंसरी में ले गये। इतवार होने से सन्नाटा पसरा था। उसे पलंग पर लेटने को कहा।
फ़िर स्टेथस्कोप हाथ में देकर बोले- ' इसे ब्लाउज में डाल लो।' मीना ने वैसा ही किया।
तब तक सर और सेकेटरी भी वहाँ पहुँच गये।
' सर, मशीन उमर नहीं बता रही।' शर्मा जी ने कहा।
' ये बोलती है?' मीना ने उत्सुकता से पूछा।
' हाँ---' सर ने स्टेथस्कोप के इअर एंड उसके कान में लगा कर पूछा - ' आवाज आ रही है ? '
मीना को घर्र - घर्र की आवाज सुनाई दी। उसने हाँ में मुंडी हिलाई।
' अब ये तुम्हारी उमर बताएगी--- ' शर्मा जी की तरफ घूम कर बोले -' इसे दवाई पिलाई या नहीं ?
' अभी नहीं।'
' भइया--- बिना दवाई के मशीन काम कैसे करेगी--? लाओ दवा लाओ---' सर ने शर्मा जी के हाथ से गिलास लेकर मीना को देते हुए कहा-' लो बेटा इसे जल्दी से पी जाओ।'
मीना ने घूँट भरा तो लगा अभी उलटी हो जायेगी--- सर बोले -' बिना साँस लिए पी जाओ, नहीं तो खामखाँ देर होगी---'
मीना ने जी कडा किया और पूरा गिलास पी गयी। पीते ही सर भारी होने लगा।
' मशीन तो अभी भी काम नहीं कर रही---शायद ठीक से नहीं लगी---' कहते हुए सर ने ब्लाउज में हाथ डालकर एक स्तन को हथेली में भर लिया और बोले-' अरे--- ये तो बिल्कुल ढीले हैं-- मशीन बेचारी क्या करे--- शर्मा जी खडे- खडे मुंह क्या देख रहे हैं--- इधर आइये --- ठीक से मालिश करिए---' कहते हुए सर ने झटके से ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए।
शर्मा जी दोनों स्तनों को हथेलियों से मसलने लगे---
सेकेटरी ने दोनों पैर पकड़ लिए---
सर ने झटके से साड़ी ऊपर उठाई----
सब कुछ इतनी तेजी से और अप्रत्याशित ढंग से हुआ कि मीना जब तक विरोध शुरू करती तब तक सब खत्म हो चुका था।
एक झटके से मीना वर्तमान में लौटी और फफक- फफक कर रो पडी।
अमित हतप्रभ था--- गुस्सा इतना आ रहा था कि उसने तुरंत ही तीनो को गिरफ्तार करने की ठान ली--- जियालाल को आवाज देकर गाड़ी निकालने को कहा--- जियालाल भीतर आकर खडा हो गया। अमित की सवालिया निगाहें उसके चेहरे पर टिक गयीं। ' साब---' ' बोलो---' ' डीएसपी साब को तो बता दो---' ' बता देंगे --- मुलजिम तो पकड़ लें---' ' सरकारी मुलाजिम है साब--- कहाँ जाएगा भाग कर---? अभी तो ऍफ़आईआर भी नहीं हुई है---' ' मुंशी को बोलो रपट लिख ले।' ' अभी तो तहरीर ली जायेगी साहेब--- रपट तो जब डीएसपी साब बयान ले लेंगे तब लिखी जायेगी।' मन मसोस कर रह गया अमित। हवलदार सही कह रहा था। रेप केस में बयान डीएसपी ही लेते हैं। उसने वायरलेस सैट से डीएसपी दयाशंकर को पूरा किस्सा बताया। छूटते ही बोले-' दोनों को बिठाकर रखना---संगीन मामला है--- मैं पहुँच रहा हूँ---'
अमित ने मुंशी से चाय-नाश्ते का इंतजाम करने को कहा---गलियारे में आदमकद शीशे के सामने खडे होकर वर्दी और बाल ठीक किए। अहाते में बरगद के नीचे कुछ कुर्सियां लगवा दीं। तकरीबन एक घंटे बाद डीएसपी की जिप्सी धूल उडाती आई---तब तक माँ- बेटी तीन बार पूछ चुकी थीं कि उन्हें कितनी देर और रुकना पडेगा ? ४५ साल के दयाशंकर थानेदार भर्ती हुए थे---कछुआ चाल चल कर भी डीएसपी तो बन ही गये थे----खाने-कमाने से तो परहेज का प्रश्न ही नहीं उठता--- लंगोट के भी पक्के नहीं थे----! बरगद के नीचे कुर्सियां लगी देखकर पूछा -' ये किसलिए ?'
अचकचा गया अमित। इतना ही कह पाया---' म्मैने ---सोचा---शायद आप यहाँ बैठें ?'
' पागल हो ?' हिकारत से बोले बडे साहब ---' इत्ता भी नहीं पता कि रेप केस खुले में सुनना कानूनन ग़लत है ?'
अमित चुप रहा।
'अपने ऑफिस में लाओ इसे ?' कहकर दयाशंकर आगे बढ़ गये। अमित ने इशारा किया तो माँ- बेटी उठकर अन्दर को चल दीं। वहां मौजूद सारे पुलिसिये भी इर्द-गिर्द जमा हो गये। मानो कोई मजेदार तमाशा होने वाला हो। डीएसपी साहब अमित की कुर्सी पर विराजमान हुए। कुर्सी के पास जमीन पर मीना बैठी और उसके बगल में बैठी मीना की माँ। अमित दरवाजे के पास खडा था। बयान नोट करने के लिए कागज़ कलम के साथ मुंशी महोदय भी मुस्तैद थे। सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ---
' बोल---' दयाशंकर ने कान खडे करते हुए कहा।
' दरोगा जी को सब बता दिया है---' मीना की माँ बोली।
' तो ?' साहब गुर्राए।
माँ ने इशारा किया तो मीना ने सारा किस्सा फ़िर दोहराया।
'हुन्न्न ----हुआ तो बहुत बुरा---' साहब मुंडी हिलाते हुए बोले---' तेरे ब्लाउज में हाथ डालकर मसला था ?'
'-----'
' मुंह में दही जमा है क्या---? बोलना नहीं है तो थाने क्या झक मराने आई हो---?
अमित कसमसाया---मीना के मुंह से हठात निकला- 'जी'
' क्या जी ?'
'---मसला था--'
' जोर से---?'
' जी---'
' च्चा---फ़िर तो निशान बन गया होगा ?'
'-----'
' ब्लाउज खोलकर दिखाओ---कहाँ बना है निशान ?'
अमित ने कुछ कहना चाहा---साहब ने मुख की भंगिमा को तनिक बंकिम किया---' तुमने देखा है निशाँ ?'
' नो सर !'
' इसने कहा और तुमने मान लिया ?'
अमित चुप रहा---साहब माँ की ओर मुखातिब हुए---' इत्ता टाइम नहीं है अपने पास---रपट लिखानी है तो जल्दी कर---'
माँ ने बेटी की छाती उघारी---साहब ने गौर से देखा---' इस पर तो कोई निशान है नहीं---डाक्टरी में ही हवा निकल जायेगी शिकायत की---' फ़िर उन्होंने स्तन को हाथ से छुआ----हाथ में भरा----मसलना शुरू किया---मीना कसमसाई---साहब का हाथ हटाना चाहा तो उनकी पकड़ और भी सख्त हो गयी---अपनी बेबसी पर रुआंसा हो आया अमित बाहर जाने लगा तो साहब ने कहा ' दरोगा जी---!'
' जी---'
' देखो जरा---कहीं कोई निशान दिख रहा है ?'
' सर, मसलने का क्या निशान बनेगा ?'
' जुबान लड़ा रहे हो---?'
' सोरी सर !'
साहब ने स्तन अभी तक हाथ में दबोच रखा था---बोले---' कोई निशान दिख रहा है---?'
' नो सर---!'
' फ़िर----?'
अमित को कोई जवाब देते न देख साहब ख़ुद ही बोले ' केस तो साबित होगा नहीं---ऊपर से थुक्का-फजीहत होगी सो अलग---'
' बट सर---मेडिकल रिपोर्ट में तो क्लीयर हो ही जाएगा---!' अमित ने कहा। उसकी बात को बीच में लपकते हुए दयाशंकर बिफर पडे---' क्या हो जाएगा क्लीयर---? यही ना कि सेक्स हुआ----वो तो राजी-बाजी से भी हो सकत है----नईं ?'
अमित से कुछ भी कहते नहीं बना।
' नीचे तो निशान होंगे---' साहब ने इन्क्वारी आगे बढ़ाई ' जोर- जिना हुआ है तो खरोंच-वरोंच के निशान तो बने ही होंगे ?'
मीना चुप थी। अमित चुप था। मीना की माँ चुप थी। तीनो के मन में शायद एक ही बात थी ---मति मारी गयी थी जो यहाँ आए---!
' दिखा---नीचे भी दिखा---' दयाशंकर ने इधर-उधर देखा फ़िर बोला ' थाने में कोई लेडी स्टाफ तो है नहीं---हमें ही चैक करना होगा----हरी इच्छा---चलो लेट जाओ---'
मीना बैठी रही।
' नखरे तो देखो साली के---खुदई गेईए होगी मजे लेने---पैसे नहीं मिले होंगे तो रेप-रेप चिल्लाने लगी---लेट जा ---चैकप तो करना ही पडेगा---!' अपनी बात पूरी करने से पहले ही दयाशंकर मीना को धक्का देकर जमीन पर चित्त कर चुके थे---! अमित बाहर आ गया---मुंशी ने माँ से कहा ---' चल मेरे साथ आ---इस ब्यान पर अंगूठा लगा---' वह माँ को अपने साथ बाहर ले गया। दरोगा के दफ्तर में साहब थे---मीना थी---तफ्तीश जारी थी।
मुनासिब वक्त के बाद वर्दी ठीक करते दयाशंकर बाहर निकले---अमित का कन्धा ठकठकाते हुए कहा-' केस में दम नहीं है फ़िर भी मेडिकल तो करवा ही लो---' साहब अब जीप में थे। कुछ ही देर में धुंआ उडाती जीप निगाहों से ओझल हो गयी। थोडी देर में मीना भी आकर खडी हो गयी।
अमित यह तो समझ चुका था कि बलात्कारियों का कुछ नहीं होना तब भी उसने मीना को मेडिकल के लिए भेजा। फ़िर एक नया तमाशा---- डॉक्टर ने अपनी जांच में मीना को जैसे जी चाहा वैसे झिंझोडा--- फ़िर अपनी रिपोर्ट में उसे सेक्स का आदी बताते हुए लिखा कि मीना नाम की जिस लडकी को जांच के लिए लाया गया उसके साथ जोर-जबरदस्ती होने के कोई लक्षण नहीं मिले।
मीना घर लौट गयी---! कुछ घंटो बाद अमित भी बस स्टैंड पर पहुँच गया---वह आईजी के नाम इस्तीफा भेजकर टूटे सपनों के साथ घर लौट रहा था।

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