पिंजरा

सुधा ने हाथ बढ़ा कर घडी का बज़र बंद किया। शाम के छः बज गये। राहुल सात बजे तक आयेगा।
खिड़की का परदा हटाया---वाह ---क्या अद्भुत नजारा था--- ऐसा लगता था मानो सूरज की गलती से सिन्दूर की डिबिया उलट गयी हो--- अम्बर से अवनि तक बिखर गया था गुलाल।
जाने कितनी देर मुग्धा नायिका की तरह सुध-बुध खोकर वह बाहर का नज़ारा निहारती रही----फ़िर एकाएक उदास सी हो गयी।
बिस्तर से उठकर सीधे बाथरूम में घुस गयी सुधा। गाउन को शरीर से अलग किया----कुछ देर तक आईने में अपनी निर्वसना देह पर अलग- अलग कोणों से द्रष्टिपात किया--- प्रत्यंचा की तरह तनी , झुकी, दांयें- बांयें हुई---फ़िर शावर खोल दिया--- ठंडे पानी की फुहारें तन ही नहीं मन को भी भिगोने लगीं---- मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पडा है--- गुनगुनाती हुई सुधा का मन और नहाने का हो रहा था लेकिन घडी इजाजत देने को तैयार नहीं थी---बाहर निकली तो मोबाईल बज रहा था---- देखा--- सागर था--- कुछ सोचकर मोबाईल वापस रख दिया--- सागर भी जानबूझकर तभी फ़ोन करता है जब राहुल के आने का वक्त होता है--- फ़िर कहेगा - मैं तो हाशिया हूँ ----- अब हो हाशिया तो बने रहो ------ तुम्हारे पीछे पति को तो नाखुश नहीं कर सकती-----उंह----!
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राहुल का हाथ डोरवेल तक पहुँचा भी न था कि दरवाजा खुल गया--- शिफान की आसमानी साडी में सुधा की छटा देखते ही बन रही थी--- ब्रीफकेस सुधा को थमाया-- राहुल की आंखों के भाव देख सुधा को लगा कि आज राहुल उसे बाँहों में नहीं भी भरे तो चूमे बिना तो नहीं मानेगा--- राहुल आगे निकल गया तो वह भी दरवाजा बंद कर उसके पीछे - पीछे ड्राइंग रूम में आ गयी। राहुल ने सोफे पर बैठ कर टीवी खोल लिया। सुधा ने उसे कुरता-पायजामा थमाया और चाय लेने चली गयी--- ट्रे में नमकीन का नक्काशीदार डिब्बा और चाय के दो प्याले लेकर वापस आई----वह भी राहुल के पास दूसरे सोफे पर बैठ गयी। उसका बहुत मन कर रहा था कि राहुल उसे अपने पास बुला ले--- ऐसा नहीं हुआ तो वह ख़ुद ही पति की बांहों में जाने के लिए उमगकर उठी---- तभी राहुल बोल पडे-' कैसी बकवास चाय बनाई है---?'
सुधा का सारा उत्साह साबुन के झाग की तरह बैठ गया। राहुल कह रहा था-' एक आदमी सारे दिन मर- खपकर अपनी हड्डियाँ तुड़वाकर घर लौटे तो एक प्याला चाय की उम्मीद तो कर ही सकता है----'
' मैं दूसरी बनाकर लाती हूँ---'
' रहने दो --- नहाने जा रहा हूँ--- अब खाना खाऊँगा---भूख लगी है---'
' ठीक है।' सुधा और क्या कहती--- उसने भी चाय नहीं पी --- जितने मन से बनाई थी उतने ही बेमन से छोड़ दी। खाना लगाने किचिन में पहुँची। थाली परोसते हुए मन में आया आज अगर प्रीतीश होता तो लोगों की परवाह किए बिना बाहर ही लिपटना-चिपटना शुरू कर देता। सिन्दूरी शाम उसे कितनी लुभाती थी। ---- पुराने दिन याद आए तो बहुत सी घटनाएँ सामने घूम गयीं---- अचानक तन्द्रा टूटी ----
' खाना तैयार है मैडम ?' राहुल पूछ रहा था।
' जी--- लग चुका है--- आइये---' सुधा डाइनिंग टेबुल पर खाना लगाते हुए बोली।
' यहीं ले आओ यार---' केवल कच्छा पहने सोफे पर पसरे राहुल ने कहा।
' ओके--' सुधा ने खाने का सामान सोफे के सामने रखी टेबल पर लगाते हुए कहा- ' लीजिये--'
टीवी देखने में मगन राहुल ने पहला निवाला मुंह में डालते हुए पूछा- ' चाय?'
' तैयार है---लाऊं? '
'और क्या--- चाय के साथ खाने का मज़ा ही कुछ और है--- नईं ?'
' वो तो है---' सुधा ने मन ही मन हंसते हुए कहा।
' यार कुछ भी कहो--- शिल्पा के फिगर का जवाब नहीं--'
' अक्कू का भी---'
' अक्कू कौन?'
' अरे --- अक्षय को नहीं जानते---'
' अच्छा व्वो ---'
' हाँ व्वो---'
' अजी-- बच्चा है---'
' सदके जाऊं--- बडा सालिड बच्चा है--'
' ऐई---' राहुल ने टीवी बंद कर दिया--' रंग-ढंग ठीक नहीं लग रहे---'
फिक्क से हंस पडी सुधा---खाना खत्म कर बर्तन सिंक में पहुंचाए। राहुल ने टीवी फ़िर खोल लिया था। सुधा उसके बगल में आकर बैठ गयी। राहुल टीवी देखता रहा---सुधा बोर होती रही--- बारह बजे फ़िल्म खत्म हुई।
' चलें?' राहुल ने पूछा।
' चलो।' सुधा ने कहा।
दोनों उठकर बेडरूम में आ गये। सुधा ने साड़ी उतारकर नाइटी पहनी। राहुल ने कच्छा भी एक तरफ फेंक दिया।
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लम्बे- चौडे पलंग के एक सिरे पर राहुल था, दूसरे पर सुधा। राहुल ने बांयी बांह फैलाई--- सुधा ने करवट लेकर अपना सर बांह पर रख दिया--- दोनों हथेलियों में राहुल का चेहरा भरा और बेतहाशा चूमने लगी---राहुल भी बेसब्र हो उठा--- दांया हाथ पत्नी की कमर में डाला ----एक झटके से उसे अपने और करीब किया----सुधा के बेहद गरम चुम्बनों का जवाब जबरदस्त आवेग से देना शुरू किया--- अगले कई पल तूफ़ान और झंझावात के थे---- बेडरूम में भूचाल आया हुआ था-----तकरीबन आधा घंटे बाद दोनों अलग हुए तो सुधा के चेहरे पर अपार तृप्ति थी ---- राहुल भी ऐसे लग रहा था जैसे अभी-अभी ढेर सारी मलाई चाट कर निपटा हो---- तृप्ति और थकान में डूबे जोड़े को कब नींद आ गयी---पता ही नहीं चला।
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अलार्म बंद होने का नाम नहीं ले रहा था। राहुल ने उठकर बंद किया---सुधा को झिंझोड़कर उठाया----
' मैडम ----! उठिए ---- मुझे ऑफिस भी जाना है----'
' बस्स्स ----य्यार --- पाँच मिनिट ---प्प्लीज----' अलसाई सुधा ने बडे ही मादक अंदाज में कहा।
राहुल को उसका यह अंदाज इतना भाया कि वह ख़ुद भी दुबारा पलंग पर पसर गया। सुधा ने एक बडे जोरदार झटके से उसे अपने ऊपर खींच लिया। एक और जबरदस्त एपिसोड--- थकान का आलम यह था कि दोनों को होश ही नहीं रहा और नींद ने उन्हें फ़िर अपने आगोश में ले लिया।
उनींदी सुधा ने घडी देखी तो जैसे करंट लग गया हो--- हडबडाकर उठी--- सवा सात बज चुके थे---- राहुल को सवा आठ वाली लोकल पकडनी होती है। उसे झकझोरा----वह कूदकर पलंग से उठा ----सुधा खिलखिलाकर हंस पडी---- वह पागलों की तरह हंसे जा रही थी---- राहुल को पहले तो समझ ही नहीं आया कि क्या माज़रा है---- अचानक शीशे पर नज़र पडी तो लपक कर कच्छा उठाया और बाथरूम में घुस गया---सुधा तब भी हंसे जा रही थी।
' महारानी जी -----तौलिया देने का कष्ट करेंगी ?' बाथरूम से राहुल चिल्लाया।
' येल्ल्लो ----' सुधा राहुल को तौलिया देने लगी तो राहुल ने लपक कर उसे भी भीतर खींच लिया।
' ह्ह्हे ---- क्या करते हो जी--- ' सुधा कुछ और बोलती तब तक तो राहुल उसकी नाइटी एक तरफ फेंक चुका था। दोनों देर तक एक-दूसरे को नहलाते रहे। बाथरूम में प्रेम का आवेग चरम पर था।
' हेइ ---क्या करते हो---?' राहुल की हरकत को महसूस कर सुधा चिंहुक उठी---' क्या हो गया है तुम्हें--- हरदम तैयार----एवररेडी ----' वह निहाल हुई जा रही थी।
' तुम हो ही ऐसी आग---कोई भी सुलग उठे---' राहुल की आवाज बदल चली थी।
' उईई ---' सुधा की सांसे भी भारी हो उठीं।
बाथरूम बेडरूम में बदल चुका था। सीत्कार और सिसकारियों से उन्मादित।
दांपत्य कर्म से निवृत होते ही राहुल को ऑफिस की चिंता सताने लगी। दोनों फुर्ती से बाहर निकले।
' ऐसा करो---अब खाना तो रहने ही दो---मैं कैंटीन में कुछ खा लूँगा----' राहुल जल्दी-जल्दी कपड़े पहनते हुए बोला।
सुधा ने फटाफट चाय बनाई ---- साथ में कुछ स्नेक्स रखे---ब्रीफकेस ---पकडाया----कुछ कहती तब तक तो राहुल फुर्र हो चुका था।
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----अचानक एक सूनापन सा तारी हो उठा। दरवाजे की घंटी फ़िर घनघनाई---रीता थी---काम करने वाली बाई----भीतर घुसते ही वह अपने काम नें जुट गयी---घर का सारा काम वही करती थी। सुधा के पास करने को कुछ भी नहीं था। कहीं आना-जाना राहुल को पसंद नहीं था। इसी कारण कोई आता भी नहीं था। देर तक सोचती रही, क्या किया जाए---सागर को फोन लगाया ----उसने उठाया ही नहीं--- चिढ उठी सुधा----- ' नहीं उठाते न उठायें---- समझते क्या हैं अपने आप को ----?' अगला फोन बेबी को लगाया----सुधा की आवाज सुनते ही किलक उठी---दोनों सहेलियां बातों में डूबीं तो समय कब गुजर गया पता ही नहीं चला---दो घंटे से भी ज्यादा देर तक बात करने के बाद भी मन नहीं भरा। बेबी का बेटा स्कूल से लौट आया तो फोन रखना पडा। बीच-बीच में रीता के सवालों के जवाब भी देती रही थी-----मसलन----सब्जी क्या बनेगी ?--- कपडे कौन से धोने हैं ? चपाती बनाऊं या पराँठे ? ---वगैरह-वगैरह ।
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टीवी खोला तो वही रात को दिखाए जा चुके सीरियल रिपीट हो रहे थे। न्यूज़ चैनलों पर कोई नई ख़बर नहीं थी---कुछ नहीं सूझा तो बुक शेल्फ से शोभा दे की नई किताब उठाकर पढ़ने लगी। नींद सी आने लगी तो पलंग पर आकर लेट गयी---- दरवाजे में आटोमैटिक लाक है। रीता बाहर जायेगी तो ख़ुद ही बंद हो जायेगा। छः बजे का अलार्म लगाते-लगाते उसे गहरी नींद आने लगी थी।
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अलार्म बजा---सुधा उठी--- बाहर देखा----कल जैसा ही सिन्दूर आज भी बिखरा था---- धरती लाज से लाल हुई जा रही थी----वह बाथरूम में घुस गयी---- गाउन शरीर से अलग हुआ---आईने में देखा तो कुचाग्र पर नीला निशान देख कर ख़ुद से ही शर्मा गयी----कितने दुष्ट हैं राहुल----अचानक उसे अपनी देह से केसर की गंध फूटती महसूस हुई---- यूडी कोलोन की पूरी शीशी बाथटब में उंडेलकर ख़ुद भी उसमें समा गयी। सोच रही थी----आने दो--- आज अगर बाथटब में ही इस नीले निशान का बदला न लिया तो मेरा भी नाम सुधा नहीं---! जाने क्या मन में आया कि फिक्क से हंस पडी।
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राहुल का इन्तजार करने के लिए सुधा सज-संवर कर ड्राइंग रूम में सोफे पर आकर बैठ गयी। फेमिना का नया इशू देखने लगी तो मन में आया कि एक ये लडकियाँ हैं जिन्होंने छोटी सी उमर में ही आसमान नाप लिया--- मैंने क्या गलती कर दी जो मेरा आसमान बाथटब और बिस्तर तक सिमट कर रह गया। टप्प से कुछ आंसू टपके और फेमिना के पन्नों में खो गये----डोरवेळ की आवाज ने तन्द्रा तोडी तो बिजली की फुर्ती से दरवाजा खोलने को दौड़ पडी---- यही है जिंदगी !!!
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