झूटे

सुधा ने लिफाफा खोला--- सागर का खत था---लिखा था--- सुनो
तुम मेरा पहला प्यार भले ही न हो लेकिन अन्तिम या शायद अनंतिम तुम्ही हो---! तुम मिलीं तो जिंदगी ऐसे खिल उठी जैसे मैं कभी सोच भी नहीं सकता था। जीवन के सन्नाटे को कभी सबीना तो कभी अनुपमा जैसे छलावों से तोड़ने के भरम बुन रहा था---! तुमने कहा नहीं पर मैंने सुन लिया कि तुम कह रही हो ' आओ ---प्यार करें---' तुमने तो कुबेर बना दिया मुझे--- मन से---और तन से भी---! तुमसे पहले मुझे सचमुच पता नहीं था कि वसंत ऐसे भी आता है---बहारें ऐसी भी होती हैं----जीवन इतना मादक और खूबसूरत भी हो सकता है----!
हमने जो जिया उसे दोहराने या सुनने का वक्त तुम्हारे पास शायद न हो---वक्त है ही ऐसी शय ----! तुम्हारा कितना भी एहसान मानू कम है---तुम न होती तो शायद मैं कभी जान भी न पाता कि इतनी दिलचस्प होती है जिंदगी---- मुझे तो लगने लगा था कि तुम्हीं हो मेरी जिंदगी----पगला था मैं---ऐसा भी कहीं होता है----तुम तो किसी और खुशनसीब का मुकद्दर थीं----! मुबारक हो---!
मानता हूँ कि मैं बहुत कमीना और खुदगर्ज इंसान हूँ---केवल अपना भला देखता हूँ----देह की हवस और भिखारियों की तरह पैसे मांगते रहने की बुरी लतें भी पाल रखी हैं----खैर---! यह बात फ़िर कभी।
हम एक नाजुक मोड़ पर हैं---- यहाँ से हमारे रिश्ते का रूप बदल रहा है---इसे टाला भी नहीं जा सकता---! तुम कहीं भी गलत नहीं हो ----तनिक भी----तुम बहुत अच्छी हो--- ओस की बूँद की तरह पाकीजा और मासूम----! मैंने तुम्हे बहुत तबाह किया----पाप भी दिया----संताप भी---! अभी भी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा हूँ--- जानती हो ऐसा क्यों है---?
सुनो, सच तो यह है कि जिंदगी से तुम्हारे निकलते ही सब कुछ ख़त्म हो गया---! खोखला हो गया हूँ मैं---- पराजित और श्लथ---! बाज़ार में खडे उस बच्चे की तरह घबरा रहा हूँ जिसकी ऊँगली माँ के हाथ से छूट गयी हो---यहाँ भी वक्त ही मदद करेगा---- लकवा मार गया है जिंदगी को---वह तो ठीक नहीं होगा ---लेकिन इस छटपटाहट से तो उबर ही जाऊंगा----! मुझे अकेला छोड़ दो----इकलौता यही इलाज है मेरा।
तुम्हें मुझसे निजात तो पानी ही होगी--- ये रोज-रोज छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाना ---- बे-मतलब का अनबोला---ख़ुद का तमाशा बनाना----! तुम्हें क्या लगता है--? मुझे बहुत सुख मिलता है तुम्हारा दिल दुखाकर ? ----- ऐसा नहीं है--- पर मैं अपने को रोक नहीं पाता ----चाहकर भी----इसके लिए मुझे माफ़ करना--!
कुछ दिनों के लिए मुझे अकेला छोड़ दो----मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा--- फ़िर हम पहले की तरह ही बातें करेंगे--- ढेरों बातें----तुम न चाहोगी तब भी----फिलहाल हमारे लिए बेहतर यही है कि हम एक-दूसरे के बिना रहने की आदत डाल लें----तुम्हारे पास तो मन बहलाने के लिए----सोचने के लिए ---- सपने देखने के लिए बहुत कुछ है--- इन्ही में से कुछ मैं बाँट लूँगा---!
तुम्हें पता हो तो हो---मुझे तो नहीं पता कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ----इतना जानता हूँ कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब तुम मेरी जिंदगी में नहीं होगी, यह सच मैं भूल गया था-----! जब मेरे आई लव यू कहने पर तुम खामोश रहने लगीं तब एहसास हुआ कि मौसम बदल रहा है----जब जागो तभी सबेरा---!
सबीना के नशे में आकंठ डूबा था---तुम्हारे आते ही सारा नशा काफूर हो गया---चौदह साल बाद एक और नदी सबीना जैसी ही उद्दाम और अदम्य लालसा के साथ उमड़ी ----अपने सारे तटबंध तोड़कर मुझ तक आई----मुझे अपने आवेग में बहा ले जाने को आतुर ----मेरे साथ बहने को तत्पर ----एक रात मैं छत पर था ---- शायद तुम्हारे खो जाने की बेचैनी से परेशान---- उस नदी ने मुझे बाँधना चाहा----जाने कब छत पर आई -----जाने कब दरवाजे की सिटकनी चढाई---मुझे सचमुच एहसास नहीं हुआ कि कब उसने मुझे अपने में समेटने की चेष्टाएँ शुरू कर दीं ----लेकिन एहसास होते ही उसे मैंने जिस तरह झिटका वह कोई तीसरा नहीं समझ सकता---उसकी तिलमिलाहट दहशत पैदा करने वाली थी----यह है तुम्हारी ताकत और तुम्हारा तिलिस्म----जिसके बूते मैं ऐसा कर सका---बीच में कुछ बरसाती नदियाँ भी आयीं किंतु तुम्हारे आतंक से ख़ुद ही लौट भी गयीं----! सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी कुव्वत थी जो मुझ जैसे कामी पुरूष को इस हद तक एकनिष्ठ बना दिया कि उसकी पत्नी तक उसके सान्निध्य को तरस गयी---- सचमुच तुम जैसा कोई हो ही नहीं सकता। तुम्हारा साथ किसी के लिए भी फख्र की बात है--- मैं वाकई बडे नसीबों वाला हूँ----! इतने बरस तुम्हें अपनी मरजी से चलाया----अब राई- रत्ती हक भी खत्म---कुछ तो वक्त लगेगा ही बदले हुए हालत को आत्मसात करने में----! थोडी सी मोहलत दो---तुम्हें शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगा---!
जान ! ----तुम्हारी जिंदगी से निकल जाऊंगा---तुम निश्चिंत रहो---हाँ इतना ज़रूर है कि तुम्हे कभी अपनी जिंदगी से नहीं निकाल पाउँगा---कभी भी--- तुम मेरा मैं हो ----अलग कैसे हो सकती हो?
आई लव यू---!

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