मोहब्बत !

मोहब्बत !
कब सही , कब गलत
कौन जाने ?
पहली मोहब्बत ने कहा -
मुझे जियो
महसूस करो
उत्सव मनाओ
पर
मुझे जिन्दगी मत बनाओ
मैं टिकूंगी नहीं
तुम बे - मौत मर जाओगे ।
वह चली गयी
मैं जिन्दा रहा।
दूसरी मोहब्बत ने कहा -
मैं जादूगरनी हूँ
अबरा का डबरा करूंगी
तुम्हे हवा में
आसमान में
जमीन पर
नचाऊँगी
दिन में तारे दिखाऊंगी
और ---
और उस दुनिया की सैर कराउंगी
जिसे तुमने
देखा नहीं
जाना नहीं
जिया नहीं
तुम्हें मुझ से सब मिलेगा
बस प्रेम मत माँगना
यह हम जैसी
लड़कियों के नसीब में
होता ही नहीं।
वह भी नहीं रुकी ।
मैं तब भी जिन्दा रहा।
साल बीतते रहे
मोहब्बतें आती रहीं
मोहब्बतें जाती रहीं
मोहब्बतें भी बीतती रहीं।
इन मोहब्बतों ने
मुझे
रुलाया
हंसाया
उदास किया
बेताब किया
गुस्ताख भी किया
कभी खजुराहो रचा
कभी पंचवटी ।
हमने
कभी देह के भूगोल बांचे
तो कभी एटलस में
खोजते रहे
खोयी हुई देहों के अदृश्य टापू ।
समय गुजरता रहा
और --- जिन्दगी भी।
एक दिन
खिड़की पर कबूतर नहीं बोले

पडोसी का कुत्ता नहीं भौंका
पत्नी ने बाई को चोर नहीं कहा
बहन ने अख़बार लाकर नहीं दिया
किसी ने उठने को नहीं कहा
तो
मेरा भी मन नहीं हुआ
कि
बिस्तर से उठूँ
.... और मोहब्बत करूँ।

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