क्या बिगाडा था तुम्हारा ?


कितना मन था

तुमसे

सब कुछ कहने - सुनने का।

साथ बुने

सपनों को

मिलकर गहने - गुनने का।


पर वक्त ने वक्त ही नहीं दिया।


तुम्हारे साथ

तालाब के किनारे

पानी में पैर डुबोकर

अंगूठे के बढे हुए नाखून से

तुम्हारी एडी खुरचना।


नत्थू स्वीट में

तुम्हे पानी की बोतल

लेने भेजकर

तुम्हारा उत्तपम

चोरी से चट कर जाना।


बोटिंग करते

अंजुरी में पानी भर - भर

मेरे चेहरे को

भिगोकर खिलखिलाती

पागल लडकी को देखना।

बरसात में खुलकर

भीगने के बाद

अनसुलझे बालों का

जूडा बांधे

पकोडियाँ तलती तुम्हें

कसकर जकड़ लेने पर

कोई देख न ले

इसलिए घने से निकली

गर्म पकोड़ी

मेरे मुंह में ठूंसकर

मजे लेती तुम।


मेरी लायी

पीली अंगिया को

मेरे ही हाथों पहनकर

गुडी - मुडी होते हुए भी

आइना देखकर

मेरे कंधों पर हाथ रख

सीने में मुंह छुपा

पूछा था तुमने

' कैसी लग रही हूँ ? '


आंसुओं से भरे

मेरे चेहरे को

दोनों कुचों के बीच दबा

नेह की ऊष्मा से

भरपूर

प्यार की देवी ने

कितनी बार तो दुलारा होगा।


मेरे सारे दिन , सारी रातें

सुबह , दोपहरियाँ , शामें

सारे सन्नाटे , सारे कोलाहल

सारी मोहब्बतें !

सारी नफरतें !

हसरत , नसीहत , इबादत , अकीदत

इब्तिदा - इन्तहां

तुम से शुरू थीं

तुम्ही पर खत्म।


लगता था ताली

दोनों हाथों से बज रही है।

अब

हैरानी होती है सब सोचकर

या शायद , ऐसे ही

टूटते होंगे भरम।

मेरा भी टूट गया।

साथ ही टूट गया मेरा वजूद।


कितने बे - मानी थे

वे सारे लम्हे

जो रहे न तुमको याद।

आज मैंने भी विसर्जित

कर दिया उन्माद।

चिनाब के जिस जल में

महिवाल के लिए बही थी

प्रेमातुरा सोहिनी।

आज उसी में तिरोहित

हो गया मेरा संकल्प।

लेकिन .....

रोज - ऐ - महशर

खुदा तुमसे कहेगा जरूर ...

नादाँ नाजनीन

अपनी चीज़ को

सहेजकर क्यों नहीं रखा

शायद यह भी कहे

बेचारे ने

तुम्हारा बिगाडा क्या था ?

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