मैंने जब भी
बडे मन से
कहनी चाही
अपने मन की बात---
तुम्हारे पास
सुनने के लिए
कभी
वक्त ही नहीं था।
तुम रच रहे थे इन्द्रधनुष
और मैं ?
मैं
अपने ही चक्रव्यूह में
जूझता रहा
अपनों से।
तुम मेरे पास नहीं थे
मेरे साथ भी नहीं।
कभी होते भी नहीं थे
फ़िर भी होता था
तुम्हारे होने का भरोसा,
आज वह भी नहीं रहा।
- रवींद्र
bahut khoob
जवाब देंहटाएंchakrabyuh ghana hai
shabdon ka sanyojan bahut hi achchh hai.Pasand aayi aapki kavita.
जवाब देंहटाएंNavnit Nirav
बहुत उम्दा!!
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