भटकन


तुमने

खामोशी के खत

पढ़ने छोड़ दिए

इसीलिए नयनों में

भाव नहीं आते।



अब भी अविराम

निशा के नेह निमंत्रण

कोलाहल के सन्नाटे

भीड़ भरी तन्हाई

मावस का उजियारा

पूनम का खालीपन

देहरी की अंगडाई

चौखट का अलसाना

सूरज का उग आना

गुर्राना , शरमाना

चुपके से ढल जाना।

जैसे तब होता था

होता तो अब भी है

अंतर बस इतना है ----

पहले तुम्हारी गोद में

सर रखकर

महसूसता था इन्हें।

------- !

अब इन्हें महसूसने के लिए

भटकता रहता हूँ

तुम्हारी गोद की तलाश में-----।

- रवींद्र

टिप्पणियाँ

  1. अब भी अविराम
    निशा के नेह निमंत्रण
    कोलाहल के सन्नाटे
    भीड़ भरी तन्हाई
    मावस का उजियारा
    पूनम का खालीपन
    देहरी की अंगडाई
    चौखट का अलसाना
    सूरज का उग आना
    गुर्राना , शरमाना
    चुपके से ढल जाना।
    जैसे तब होता था
    होता तो अब भी है
    अंतर बस इतना है ----
    पहले तुम्हारी गोद में
    सर रखकर
    महसूसता था इन्हें।

    बहुत ही खूबसूरत रचना...

    जवाब देंहटाएं
  2. अब इन्हें महसूसने के लिए
    भटकता रहता हूँ
    तुम्हारी गोद की तलाश में-----।

    ओह्ह!

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.

    जवाब देंहटाएं
  3. तुमने
    खामोशी के खत
    पढ़ने छोड़ दिए
    इसीलिए नयनों में
    भाव नहीं आते।
    sahajata aur anubhuti ki sunder kriti ko salam

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई ।

    अब इन्हें महसूसने के लिए
    भटकता रहता हूँ
    तुम्हारी गोद की तलाश में-----।

    जवाब देंहटाएं

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