पोर - पोर परस गयी पीर


नयनों के कोर - कोर नीर !

पोर - पोर परस गयी पीर !

आँगन , छत , दीवारें

अब किसको मनुहारें ?

बीत गया स्वप्न मधुर

लोहित है भंगुर उर !

गात थकित मन मगहर

आया नव संवत्सर !

विगत हुई शुभदा ! चकित है समीर ।

पोर - पोर परस गयी पीर !

- अपर्णा खरे

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