तितली

भरी गर्मी में
एक तितली
मेरे काँधे पर
बैठ गयी।
मैंने हथेलियों के कोटर में
अंजुरी भर दुलारा
फिर आसमान में उड़ाया
वह
नहीं उडी।
ठिठुरती ठण्ड में भी
जब उसने
मेरा दामन नहीं छोड़ा
तो
मुझे लगा कि
उसको मुझसे लगाव है शायद।
बरसात आई
कडकडाती बिजली
मूसलाधार बारिश
बड़े-बड़े ओलों
और
उफनते नदी-नालों के बीच भी
तितली ने मेरा कन्धा नहीं छोड़ा।
इस तरह
ग्रीष्म, वर्षा, शरद,
शिशिर और हेमंत में भी
साथ नहीं छूटा
तो
मुझे
उसकी आदत हो गयी।
मान लिया कि
अब मेरी प्रिय तितली
कभी
कहीं नहीं जाएगी।
इस बार आया वसंत
आ गये कंत
हमेशा की तरह उड़ते हुए
मेरी तितली
फूल पर बैठ गयी
पराग को चखा
और उसी के आगोश में सो गयी।
मैं निश्चिन्त था
क्या हुआ,
सुबह तो आ ही जाएगी।
सुबह तो आई
पर वह नहीं आई
फिर ऐसी तमाम सुबहें आयीं,
वह किसी भी सुबह नहीं आई।
दरअसल
वसंत के आने तक
बाकी ऋतुएँ कहीं तो गुजारनी थीं
मेरे साथ गुजार लीं
उसका समय कट गया
मैं भी निहाल हो गया/
मैं समझ गया
कि तितली थी तो लड़की ही
सारी तितलियाँ
लड़कियां होती हैं
सारी लड़कियां त्रिया होती हैं......!




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