पागल

दरवाजा बडी शाइस्तगी से बंद कर दिया गया। डाक बंगले की लाबी में सोफे पर लेटा सागर हतप्रभ था। बडी देर तक तो यकीन ही नहीं हुआ।
तीन साल पहले लेह के सर्किट हाउस में कही काजल की बात याद आ गयी। उसने कहा था - ' जिस सुधा के लिए सबको ठेंगे पर रखे रहते हो शादी के बाद वही अगर तुम्हारे मुंह पर दरवाजा मारकर पति के साथ सोने न चली जाए तो कहना।'
दिमाग ने कहा ' गलत क्या है? नई - नई शादी है --- पति के साथ नहीं सोयेगी तो क्या जोगन बनकर तुम्हारे साथ रात भर जागेगी?'
दिल को यह तर्क कुबूल नहीं हुआ। बीवी तो सागर की भी थी। उसने तो कभी ऐसा नहीं किया। वह परेशान हो उठा। सागर की सबसे बडी कमी यही थी। गलत बातों पर जम जाता था। जानता था कि वह ग़लत है , पर मानता नहीं था।

दूसरे कमरे का दरवाजा तब भी खुला था। काजल उसका इंतजार करते-करते सो चुकी थी। सागर की नींद का दूर-दूर तक कोई अता- पता नहीं था। अचानक सुधा के कमरे से कुछ आवाजें आने लगीं तो बिना कोई आवाज किए सोफे से उठा और दरवाजा खोलकर बाहर खुले मैदान में निकल आया। तेज हवा से हिल रहे पेड़ डरावनी आवाजें निकल रहे थे। ----ठिठुरा देने वाली ठंड में भी पसीने से तर था सागर। उसका नपुंसक गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था।

क्या सुधा को पता नहीं था कि वह लाबी में है? थोड़ा सब्र नहीं कर सकती थी ? मेरा इतना लिहाज भी ज़रूरी नहीं समझा? उसे ऐसे बीसियों वाकये याद आ रहे थे जब ऐसी ही छोटी- छोटी खुशियों से उसने काजल को महरूम रखा। कितना बेवकूफ था वह ?

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ठीक से याद नहीं, रात को कितने बजे वह अपने कमरे में पहुँचा। यह भी नहीं पता कि रात को नींद आई या नहीं। इतना याद है कि जब उसने सुधा की दी हुई घडी में वक्त देखा था तब सुबह के चार बजे थे और वह एक पहाडी टीले पर चढा था। दिल और दिमाग बिलकुल खाली थे। एक घंटा और बीत गया। नीचे उतरकर डाक बंगले तक आया। सुधा के पट तब भी बंद थे। काजल रजाई ओढे थी। पता नहीं सो रही थी या जाग चुकी थी।
आवाज दी तो उठकर बैठ गयी।
' चलो, घुमाकर लाता हूँ।'
वह तुरंत ही उठकर तैयार हो गयी।
लम्बी बीमारी से कमजोर हुई काजल को सहारा देकर वह पहाडी पर काफी ऊंचाई तक चढ़ गया । काजल हांफ रही थी, फ़िर भी बेहद खुश थी। सागर से उसे एक ही शिकायत थी। वक्त न देने की। सागर को भीड़ में घिरे रहना पसंद था। वह चाहती थी कुछ वक्त ऐसा हो जो केवल उसके लिए हो। मगर ऐसा कभी नहीं होता। कोई न होता तो सुधा तो हर वक्त रसीदी टिकिट की तरह चस्पा रहती ही थी। बेशक सुधा काजल का बहुत ख्याल रखती। लेकिन समय के बंटवारे पर उसे खुन्नस आ जाती। अच्छा हुआ उसकी शादी हो गयी। अब वह अपने पति के साथ मगन है। बच्चू चाहें भी तो उसके पास समय ही नहीं है इनके लिए।
रात भर सागर को छटपटाते देख काजल को बहुत मज़ा आया। अभी भी वह सागर की बेचैनी को खूब समझ रही थी। फ़िर भी इस बात से खुश थी कि सागर के पास अब कोई चारा नहीं। सागर की निगाहें लगातार डाक बंगले के द्वार पर टिकी थीं। कोई दो घंटे गुजर गये। सागर दुनिया भर की बातें कर रहा था। काजल को उसकी बेचारगी पर तरस आने लगा।
तभी डाक बंगले के द्वार पर हेंडी केम पकडे सुधा प्रकट हुई। सागर को लगा , डाक बंगले में उसे न पाकर वह परेशान हो गयी होगी। आवाज़ देने को था, काजल ने इशारे से रोक दिया।
सुधा चारों तरफ बिखरी खूबसूरती को कैमरे में क़ैद करने लगी। आधा घंटा और गुजर गया। सुधा फ़िर भीतर चली गयी। सागर और उदास हो गया।
'चलें ?' काजल पूछ रही थी।
'चलो।' सागर बोला।
दोनों उठ खडे हुए। तभी सुधा फ़िर बाहर निकली। इस बार वह उन्हें ही बुलाने आई थी। वह चारों तरफ नजर दौड़ा रही थी। चेहरे पर झुझलाहट आने लगी। सागर को उसकी परेशानी में मज़ा आ रहा था। ज्यादा देर तक वह भी इंतजार नहीं कर सका।
फिल्मी गाने की तर्ज़ पर गुनगुनाते हुए चिल्लाया - ' ओ---ओ---ओ-ओ-'
'कहाँ हो ?' सुधा भी जोर से चीखते हुए इधर-उधर देखने लगी।
सागर पर नजर पड़ते ही हैरानी से बोली-' हे भगवान!!! इत्ते ऊपर !!!! रुक जाओ मैं भी आती हूँ ।'
तेजी से दौड़ती हुई सुधा कुछ ही देर में उनके पास पहुँच कर बुरी तरह से हांफने लगी।
'राहुल उठ गये?' सागर ने पूछा।
'ना जी।' सुधा ने कहा।
'ये तो तुमसे भी बडा कुम्भकरण है।'
'और क्या---!'
कुछ देर यूँ ही गपशप करके तीनों नीचे उतर आए। राहुल तब भी सो रहे थे।

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पहाडी रास्तों पर तीस किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कार दौड़ा रहे सागर की बेचैनी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। बाजू वाली सीट पर काजल गहरी नींद में थी। राहुल और सुधा पीछे की सीट पर थे। सडक किनारे एक दुकान से मिनरल वाटर की बोतलें खरीदने के लिए सागर ने कार रोकते हुए कहा - ' राहुल, पानी के साथ कुछ स्नेक्स भी ले लेना।'
कार रुकने के बाद भी कोई नहीं उतरा तो सागर ने पीछे गर्दन घुमाते हुए कहा-' राहू...' आवाज बीच में ही अटक गयी। राहुल सुधा का सर अपने सीने पर रखे चूमने जैसा उपक्रम कर रहा था।
सागर को अपनी तरफ देखते बोला- ' भइया जी आप चले जाइए प्लीज ---!'
सागर अकबका गया।
निगाहें अनायास सुधा के चेहरे पर टिक गयीं। उसे पता था कि सुधा हडबडा उठेगी।
---- ऐसा हुआ नहीं । उसकी आँख से आँख मिलाए सुधा की मुद्रा में तनिक भी परिवर्तन नहीं हुआ। उल्टे उसे लगा कि सुधा उसे देखकर शोखी से मुस्करा रही है। सागर का तो सर ही चकरा गया। यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही सुधा है जो उसकी नजर उठते ही छुई-मुई हो जाती थी।
'राहुल तुम्ही चले जाओ। मेरा मन नहीं कर रहा उतरने का।'
'ओके, मैं ले आता हूँ।' कहता हुआ राहुल नीचे उतरकर दुकान की और बढ़ गया।
फट ही तो पडा सागर। 'सुधा ---- क्या हो गया है तुम्हें? किसी का कोई लिहाज ही नहीं। शादी तो सब करते हैं लेकिन ऐसा नंगनाच करते तो मैंने किसी को नहीं देखा---- !'
इसके बाद तो आपे से बाहर हुए सागर को होश ही नहीं रहा कि उसने क्या- क्या कहनी- अनकहनी कह डाली।
गौरैय्या सी सहमी सुधा हतप्रभ थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि पति ने अगर उसे आलिंगन में बाँध लिया तो इसमे बेहयाई कहाँ हो गयी। काजल भी हैरान थी। सुधा की आंखों में देर से ठहरे आंसू बाँध तोड़कर बह निकले। सागर फ़िर भी बकता रहा। उसकी बकवास राहुल के लौटने पर ही थमी। वह भी यह कहते हुए कि 'अब ऐसी हरकतें मत करना।'
कार में घुसते ही राहुल को माहौल के भारीपन का एहसास हो गया। सुधा चाहते हुए भी अपनी रुलाई नहीं रोक पाई। राहुल सुधा को चुप कराने की कोशिश करने लगा। सागर ने कार आगे बढा दी। उसे पक्का भरोसा था कि अब पूरे रास्ते सुधा ऐसी कोई हरकत नहीं करेगी जो उसे नागवार गुजरे।
ऑडियो सिस्टम पर मुकेश की सीडी लगाकर उसने रियर व्यू मिरर देखा---- गुस्से से बेकाबू ही तो हो उठा था वह। सुधा राहुल की गोद में थी। राहुल की बांयी हथेली अपनी हथेलियों के बीच लिए हुए। राहुल का दाहिना हाथ उसके गालों को सहला रहा था। सागर समझ ही नहीं पा रहा था कि पति- पत्नी की आपसी अठखेलियों पर उसे गुस्सा क्यों आ रहा था। शायद उसके दकियानूसी संस्कारों को यह खुलापन बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था। खतरनाक पहाडों पर कार की स्पीड तेजी से बढ़ती जा रही थी।
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तीन दिन बाद आखिरकार सफर मुकम्मल हुआ। इस दरमियाँ न राहुल और सुधा का प्रेम प्रदर्शन रुका न सागर का गुस्सा कम हुआ। काजल बेचारी उपेक्षित लगेज की तरह साथ बनी रही। सुधा और राहुल को छोड़ने के बाद सागर काजल को लेकर दिल्ली वापस लौट गया। दिन में दस बार सुधा को फ़ोन करने वाले सागर ने अगले कुछ दिन एक भी फ़ोन नहीं किया। राहुल से वह बिला नागा बात करता रहा। यकीन एक बार फ़िर धराशायी हुआ। सुधा ने उसके फ़ोन न करने का कोई नोटिस ही नहीं लिया। सब जानते हैं कि सागर सुधा के बिना नहीं रह सकता। यह सच सुधा भी तो जानती है। सारी अकड धरी रह गयी।

सुधा को फ़ोन लगाया- ' कैसी हो ?'
'ठीक हूँ ' सुधा ने कहा।
'फोन क्यों नहीं किया ?'
'आपने ही कौन सा कर लिया!'
'अच्छा छोडो, और बताओ। '
'क्या बताऊँ ?'
'कुछ भी। '
'कुछ है ही नहीं। '
'बात नहीं करनी ?'
'करनी है।'
'ऐसे ही करनी है ?'
'कैसे करूँ ?'
'रख दूँ ?'
'रख दो। '
बुरी तरह से भन्नाए सागर ने सेल सोफे पर फेंक दिया।
नखरे तो देखो मेम्म के। समझती क्या है अपने आप को। नहीं करनी बात, मत करो। मेरे पास तो फालतू बातों के लिए वैसे भी वक्त नहीं है। इस जैसी बीसियों देखी हैं। अब मैं भी देखता हूँ। निहोरे करेगी तब भी नहीं बोलूँगा। कहे भी देता हूँ साफ-साफ। गुस्से में बडबडाते सागर ने फ़िर फोन लगाया।
'कहिये।' सुधा ने तल्खी से कहा।
'उल्टा चोर कोतवाल को डाटा, एक तो बदतमीजी करो उपर से अकड भी दिखाओ?'
'ना मैं चोर हूँ, ना ही मैंने कोई बदतमीजी की है।'
'वाह , क्या कहने!'
'-------'
'क्या हुआ?'
'क्या हुआ ?'
'चुप हो गयीं ?'
'क्या बोलूं ?'
'ऐसे तो नहीं चलेगा।'
'जी--'
'क्या जी ?'
'ऐसे तो नहीं चलेगा।'
'सुधा--- '
'जी ।'
'मैं तुम्हारी सारी हरकतें भूलने को तैयार हूँ तुम फ़िर भी तन्नाये चली जा रही हो?'
'मैंने कोई हरकत नहीं की।'
'मतलब ?'
'अब आप बात का बतंगड बना ही रहे हैं तो यही सही। मैं भी आपसे साफ-साफ बात करना चाहती थी।'
'क्या ?'
'आप ही बताइए, मैंने किया क्या है ?'
'कुछ नहीं किया?'
'क्या किया ?'
'तुम्हें नहीं पता ?"
'ना---'
'चलो छोडो।'
'छोडो नहीं , पकडो।'
'रहने दो, मुझे कोई बात नहीं करनी।'
'मुझे करनी है।'
'क्या ?'
'अच्छा ये बताओ , मैं आपकी हूँ क्या ?'
'तुम्हें नहीं पता?'
'मुझे नहीं पता।'
'तो फ़िर मुझे भी नहीं पता।'
'बीवी हूँ ?'
'दिमाग फ़िर गया है ?'
'महबूबा हूँ ?'
'हे भगवान---'
'बेटी, बहन, सहेली --- जो भी मानते हो --- उस नाते क्या जीवन भर मुझे अपने पास रखना चाहते थे?'
'होश भी है , क्या कह रही हो?'
'ब्याह किया था तब क्या पता नहीं था कि मैं अपने पति के साथ क्या करुँगी ?'
'सुधा---'
'मैंने किया क्या है?' सुधा की आवाज तेज होती जा रही थी। ' धूनी रमाने नहीं निकली थी---शादी की सालगिरह मनाने आई थी। ऐसे में भी आपकी थानेदारी सहूँ ? पति गलबहियां डाले तो हाथ झिटक दूँ उसका ? सिर्फ़ इसलिए कि आपका मूड ख़राब हो जाएगा ? वाह रे आपका मूड---आपने अपनी उम्र में कौन कुछ किया होगा---! '
'मैं भी कुछ बोलूं ?'
'आपके पास है ही क्या बोलने को--- छि --- कितने गंदे हो आप --- क्या सोचकर साथ चले थे ?--- ये कि मैं अपने पति को खूंटे पर टांगकर आपकी सेवा- टहल में लगी रहूंगी ? --- वाह -- चलो अच्छा हुआ आपका यह रूप भी देख लिया।'
'सुधा---'
'मैं तो सोचती थी हम लोगों की खुशी देखकर आप बहुत खुश होंगे। आप तो जल-भुनकर राख हो गये। ---- आप चाहते हैं कि मैं खुश होऊं तो आपके किए होऊं--- हंसूं तो आपके हंसाये हंसूं--- रोऊँ तो आपके रुलाये रोऊँ--- कोई और कैसे ये सब कर सकता है--- दरअसल मुझे अपनी जरखरीद मिल्कियत समझते हैं आप--- तभी तो जिस लडके को ख़ुद चुना , जिसके हाथों में बाजे - गाजे के साथ मुझे सौंप दिया --- उसके साथ भी मुझे खुश नहीं रहने दिया-- बहुत बुरे हैं आप--- और आपने भाभी के सामने मेरी जो इन्सल्ट की है न , उसे तो मैं जिन्दगी भर नहीं भूल पाऊँगी---अब मैं कभी भी आपके साथ कहीं नहीं जाउंगी--- लानत है आप पर --- पागल तो मैं ही थी जो आपके चक्कर में राहुल का ध्यान ही नहीं रखा--'

सागर के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे और सुधा बोले चली जा रही थी---- जाने कितनी देर तक और जाने क्या- क्या कहती रही--- उसकी चेतना तो तब लौटी जब सुधा चीख रही थी--- 'मेहरबानी करके अब बख्श दीजिये हमें--- हमें अपनी दुनिया में खुश रहने दीजिये--- आपको आपकी दुनिया मुबारक--- नहीं चाहिए आपसे कोई पावना--- आज-- अभी-- इसी वक्त से मेरे और आपके सारे रिश्ते खत्म--- ख़बरदार --- जो आज के बाद मुझे या राहुल को भूले से भी फ़ोन किया---' जब देर तक कोई आवाज नहीं आई तब सागर को एहसास हुआ कि फ़ोन रखा जा चुका है।
बड़ी देर तक सर थामकर बैठा रहा सागर--- फ़िर बुदबुदाया '---- ठीक ही तो कह रही थी---बेचारों का सारा मज़ा किरकिरा कर दिया--- मैं ही पागल हूँ --- कसम से, अगली बार ऐसी गलती नहीं करूँगा--- पगली --- केवल कह भर देने से रिश्ते खत्म होने लगें तो जिन्दगी कितनी आसान हो जाए ----!'

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